कालसर्प योग यानी राहू व केतू के बीच मे सभी ग्रह हो तो “कालसर्प योग” व राहू केतू के बीच मे सभी ग्रह छोडकर चंद्रमा बाहर हो तो “अर्ध कालसर्प योग” माना जाता है। इसे आमतौर पर एक अशुभ योग माना जाता है और ऐसा व्यक्ति जीवन में विभिन्न बाधाओं और कठिनाइयों का सामना लगातार करता रहता है।
कालसर्प योग के प्रभाव
कालसर्प योग से प्रभावित व्यक्ति को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- बार-बार असफलता और निराशा
- स्वास्थ्य समस्याएं
- आर्थिक तंगी
- पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति
- कार्यक्षेत्र में बाधाएं
कालसर्प योग पूजा
कालसर्प योग की शांति के लिए कालसर्प पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से सोमवार के दिन, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, प्रदोष व शिवरात्रि के दिन कर सकते है।
- स्नान: पवित्र नदी में स्नान करना।
- संकल्प: पूजा के लिए संकल्प लेना।
- नाग देवता की पूजा: नाग देवता का आवाहन और पूजा।
- राहु और केतु की शांति: राहु और केतु की शांति के लिए विशेष मंत्रों का जाप।
- हवन: हवन करना और पूजा की समाप्ति।
कालसर्प पूजा के 12 लाभ
- जीवन में शांति: मानसिक और भावनात्मक शांति प्राप्त होती है।
- बाधाओं का नाश: सभी प्रकार की बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्ति।
- स्वास्थ्य लाभ: स्वास्थ्य में सुधार और बीमारियों से छुटकारा।
- आर्थिक स्थिति में सुधार: आर्थिक तंगी से मुक्ति और धन का आगमन।
- पारिवारिक सुख: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि।
- कार्य में सफलता: कार्यक्षेत्र में सफलता और उन्नति।
- विवाह में बाधा निवारण: विवाह में आने वाली बाधाओं का निवारण।
- संतान सुख: संतान सुख की प्राप्ति।
- शत्रुओं से रक्षा: शत्रुओं और विरोधियों से रक्षा।
- अधिकारों की प्राप्ति: अधिकारों और मान-सम्मान की प्राप्ति।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश: नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से बचाव।
- आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति।
इस पूजा को करने से कालसर्प योग के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
- कालसर्प की पूजा जीवन मे कम से कम ६ महीने के गैप मे ३ बार की जाती है। दो बार विवाह के पहले और एक बार विवाह के बाद पति-पत्नि के साथ।
- जिनका विवाह हो चुका है वे ६ महीने के गैप मे ३ बार पति-पत्नि के साथ पूजा करवा सकते है।